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यह राष्ट्र मेरी आत्मा है

अघोरेभ्योथघोरेभ्
अघोरेभ्योथघोरेभ्
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क्या कहा –
यह राष्ट्र केवल संविदा है?

सुन लो –
मेरा राष्ट्र मेरी आत्मा है|
आत्मा भी संविदा प्रभु की तरफ से?
मुर्ख –
उसमे चेतना का वास भी है|
और उत्प्रेरक, प्रबल, उद्दाम पौरुष|
चंड विक्रम, दिव्य मेधा, शुभ पराक्रम|
अतिबला और बला जैसी शक्तियां भी –
ब्रम्हज्ञानी, क्षात्रतेजस पूर्ण वैभव वैश्य –
सेवा शुद्र का सत्कार करती|
किन्तु तेरी अधमता को क्या कहूँ मै?
मूढ़,पामर,खल,निशाचर या की –
मायावी दुशासन|

तुने तो रे –
पूर्ण परिभाषा बदल दी|
प्रकृति का उपहार अनुपम –
राजनैतिक व्यूह के दलदल में फंस कर –
छटपटाता और फंसता जा रहा है|
जो कभी नरता का आभूषण बना था|
एक आतंकी की उपमा पा रहा है|
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