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जो घर फूंके आपनो आवे म्हारे साथ

अघोरेभ्योथघोरेभ्
अघोरेभ्योथघोरेभ्
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मैं एक नया ब्लॉगर हूँ दुसरे शब्दों में ब्लॉगिंग की दुनिया में यह मेरा पहला कदम है|कुछ ख़ास लिखना नहीं आता|लेखनी कब असयंत हो जाय, इसका कुछ भरोसा नहीं है|फिर भी मन के भड़ास को तो निकाल ही देना चाहिए क्योंकि अगर कहीं यह एक मनोग्रंथि बन गयी तब तो कल्याण ही हुआ समझो|वर्तमान में ५ राज्यों में चुनाव होने हैं और लेखनी का प्रतिपाद्य विषय यह चुनाव ही है|समझ में नहीं आता की प्रारम्भ कहाँ से करूँ?कुछ लोगों के लिए भारतीय राजनीती १९४७ के बाद प्रारंभ होती है, तो कुछ अंग्रेजों के आगमन और भारत के संवैधानिक विकास को ही भारतीय राजनीती का उदय काल मानते हैं|घंट बहादुर लोकतंत्राचार्य यदि गुलाम वंश से भारतीय राष्ट्रीय राजनीति का उद्भव बताएं तो इसमे कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए|खैर, कहने को तो लोग इसे मकदूनिया, ब्रिटेन, अमेरिका, ग्रीस, एथेंस, स्पार्टा पता नहीं कहाँ कहाँ से आयातित मान सकते है किन्तु तर्क और तथ्यों के आलोक में उनकी यह सारी अटकलबाजी ताधडाम हो जाती है और ऐसे में बड़े बड़े माननीय बेहयाई पर उतर आते हैं|लिहाजा, रोमिलाई अथ इति हास परिहास पर न ही जाएँ तो अच्छा है|

मेरे हिसाब से वर्तमान भारतीय राजनीति की पहली सबसे बड़ी समस्या वंशवाद और दूसरी सबसे बड़ी समस्या मुसलमान हैं|मैं जानता हूँ की इस कथन को आसानी से नहीं लिया जा सकता और ऐसा कह देना ही स्वयं को साम्प्रदायिक घोषित कर देना है किन्तु १९४७ से लेकर २०१२ तक की एक एक घटना चीख चीख कर इस कथन की सत्यता साबित करती है और यही दर्शाती है की हमारे देश का राजनैतिक परिदृश्य सदा से ही मात्र इन्हीं दो बिदुओं पर केन्द्रित रहा है|आप किसी भी पार्टी के घोषणा पत्र को उठा कर देख लीजिये आपको उसके केंद्र में मुसलमान नजर आयेंगे|आप किसी भी राजनैतिक दल के नेतृत्व का अवलोकन कीजिये आपको उसके केंद्र में नेता पुत्र नजर आयेंगे|

यदि देश में द्विदलीय शासन पद्यति होती तो पहले ही आम चुनाव में नेहरु को मुंह की खानी पड़ती|यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है की पहले ही आम चुनाव में नेहरु ने गांधी के नाम पर वोट माँगा था|कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने गली गली घूम कर संघ को दुष्प्रचारित किया|गांधी के हत्यारों को वोट देना पाप है जैसे अमर्यादित नारे लगाये गए|नारों का असर पड़ा और जनता ने हिन्दू महासभा को नकार दिया|जनसंघ और हिन्दू महासभा,दोनों को मात्र ६ सीटों से संतोष करना पड़ा|कारण स्पष्ट है, तत्कालीन भारत में भी हिन्दू विरोधी कांग्रेस को हिन्दू समाज का प्रतिनिधि समझा जाता था और हिन्दू महासभा अथवा जनसंघ को वोट देकर भारतीय जनता वोटों की पुनरावृति नहीं करना चाहती थी|नेहरु के सफल होने का एक और कारण है, जनता लोकतंत्र के लिए शिक्षित नहीं थी|नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे और जनता को  राजतंत्र से पूरी तरह से छुटकारा नहीं मिला था|जनता को नेहरु महाराज नजर आते थे|तत्कालीन शक्तिशाली राजाओं ने लोकतंत्र का मुखौटा पहन लिया था|राजतांत्रिक सामंतशाही से काम नहीं चलता|अतः लोकतान्त्रिक सामंतशाही का चोला ओढ़ना रजवाड़ों के लिए मजबूरी बन गयी|

स्वामी रामदेव और उनके अनुयायिओं पर लाठियां बरसाना, सलमान रश्दी को प्रतिबंधित करना और एक भाड़े के व्यक्ति को भेजकर स्वामी रामदेव पर स्याही छिड़कवाना आदि घटनाएं केवल मुसलमानों को खुश करने के लिए सांगठनिक स्तर पर किया और करवाया जा रहा है|एक समय राष्ट्रवादी चेतना की प्रतीक भारतीय जनता पार्टी अपने सिद्धांतों से बहक चुकी है और आज राजनीति के विषय में कुछ भी बोलने का एकमात्र अर्थ है जो घर फूंके आपनो, आवे म्हारे साथ|

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