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हर देखे हगि देत हैं

अघोरेभ्योथघोरेभ्
अघोरेभ्योथघोरेभ्
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मेरे दादाजी कभी कभी चिढ़कर जोर जोर से एक चौपाई कहा करते थे,”हमरे दू ठो बैल हैं, खैरा और मकरंद,हर देखे हगि देत हैं, भूंसा देखि अनंद|” तब मैं इस चौपाई का निहितार्थ नहीं समझा करता था और दादाजी के ही स्वर में स्वर मिला कर इस चौपाई को जोर जोर से गाया करता था|आज वे हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनकी यह चौपाई वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में एकदम सटीक बैठती है|सन १९५२ से लेकर आज तक हमने खैरा और मकरंदों को ही तो चुना है|कभी केन्द्रीय स्तर पर तो कभी राज्य स्तर पर हम लगातार गलतियों पर गलतियाँ करते चले गएँ| प्रचारकों के मायाजाल में इस कदर भ्रमित हुए की हमने कभी भी अपने जनप्रतिनिधि से यह बात पूछने की जहमत भी नहीं उठाई की उसका इस देश और इस देश की संस्कृति से कितना सरोकार है?किसी ने गांधी का नाम लिया तो हम आत्मविमोहित हो गएँ|क्या हमने कभी यह जानना चाहा की उनका अन्य महापुरुषों  के बारे में क्या दृष्टिकोण है?हमें यह पढाया गया की विद्यालय लोकतंत्र के निर्माणस्थल हैं और जब हमारी आँखें खुली तो हमने सरस्वती के विद्यामंदिरों में इंद्र की कुत्सित राजनीती का प्रवेश पाया|हमें सिखाया गया, ”जल में, थल में, खडग, खंभ में, घट घट व्यापित राम कहत प्रहलाद पिता से” अर्थात राम हमारे जन्म में हैं और राम हमारे मृत्यु में हैं और जब हम होश सँभालने के काबिल हुए तो रामजन्म भूमि पर सार्वजनिक शौचालय बनवा देने की घोषणा  करने वालों ने हमसे वोट मांगे और जब हमने राम, रोटी और इन्साफ का नारा बुलंद करने वालों को चुन कर संसद में भेजा तो बाबर के मकबरे का ध्वंस उनके लिए राष्ट्रीय शर्म का विषय हो गया|

आज हमारे पास कोई विकल्प नहीं|सत्ता के क्रूर और कठोर हांथों ने विवेक का गला घोंट दिया है|भारतीयता लांक्षित हो रही है, युवा वर्ग दिग्भ्रमित है और किसी न किसी राजनैतिक दल के हांथों की कठपुतली बना हुआ है|अधिकारों की अंधी होड़ में हम अपने कर्तव्यों को तिलांजलि दे चुके हैं|”इन्साफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चल के” अब कहीं नहीं गाया जाता|हा हू करने वाले देशभक्ति गीतों ने कवि प्रदीप को इतिहास की विषय वस्तु बना दिया है|कहा जाता है की साहित्य समाज का दर्पण हैं..आज चलचित्रों ने साहित्य को हाशिये पर ला छोड़ा है|आत्मसंयम  का का पाठ पढ़ने वाले कंडोम बाँट रहे हैं|मर्यादा का यह अभूतपूर्व स्खलन आज तक कभी नहीं हुआ था|जिसकी पैदाइश में पश्चिमी देशों का सहयोग रहा हो वह खांटी हिन्दुस्तानी को बाहरी कह कर पुकार रहा है|

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